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अनंत की सीमाएँ

By Adarsh Singh



आसमान के लाखों तारे,

क्या रोज़ यूँ ही टीम-टीमाते है?

या रोशनी और धूल के,

बादलों मे फस कर रह जाते है?


क्या शोक हो अब चाँद को

कि प्रकाश न उसका खुद का है?

य गर्व हो इस बात का

कि रात्रि में उजाला सिर्फ उसका हैं?


क्या सूर्य अपने तेज की

गौरव गाथा गाता है?

या ईर्षा के भाव में

बस जलता ही रह जाता हैं?


यह ब्रह्मांड अनंत,

अन्त इसमें रचनाएं है।

तुम भी ब्रह्म के हिस्से हो

तुम्हारे मन मे बस सीमाएँ है।


By Adarsh Singh



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4 Comments


That's beautifully written and encouraging! I love it

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anshr4979
Nov 07

🌷🤍

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Best....♥️

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Iamks
Iamks
Nov 07

Lovely 🤌

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